Friday 30 September 2016

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BABA PEER NATH JI

आप यह फोटो में बाबा रामदेव श्री पीर शांति नाथ जी जालोर के सानिध्य में बैठे हैं बाबा रामदेव पतंजलि योग पीठ से तो आप को यह जानकारी देना अवश्यक है कि पातंजल योग पीठ बाबा गोरक्षनाथ जी की ही देन है आप यह लेख पुरा पढे।।


बाबा रामदेव श्री पीर शांति नाथ जी 


"हमने ‘नाथसम्प्रदाय के बारह पंथशीर्षक के अन्तर्गत उजागर करने का प्रयास कियाहै। प्रस्तुत शीर्षक के अन्तर्गत प्रसंगवष उल्लेख करते है कि आचार्यजी ने अपनीमूल्यवानपुस्तक नाथ सम्प्रदाय में कपिलमुनि (कपिलानीपंथ), लक्ष्मण (नाटेष्वरीपंथ), धर्मनाथ (युधिषिठर) तथा गंगानाथ (भीष्म पितामह) कोगोरक्षनाथ के षिष्य होना बताया है। लक्ष्मण, हनुमान और सीता गोरक्षनाथ के षिष्य थे इसकी पुषिट ओडिया साहित्य से होती है। तदनुसारवनवास समापित के पष्चात जब श्रीराम अयोध्या लौटते हैं तो उनकी गोरक्षनाथ से भेंट होती है। उनके षिष्यत्व में आने के विषय में होने वाले वार्तालापके समय श्रीराम कोपता लगताहै कि, भरत, लक्ष्मण, हनुमान और सीता पहले ही उनके षिष्य बन चुके हैं और उनके द्वारा दी गयी योग की षिक्षा के बल पर ही उन्होेंने असाध्य कायोर् को करने की योग्यता प्राप्त कर श्रीराम कार्य को कर सकने मेंं सफल हुए हैं। तब श्री राम भी उनके षिष्य बनते हैं। ‘गोरक्षनाथरहस्य नामक पुस्तक में एक अन्य कथा अनुसार रावण वध के पश्चात अयोध्यालौटकर अपना राजकार्य व्यवसिथत करने के बाद अपनी तीनों माताओं सहित अपने गुरू वशिष्ठजी के पास जाकर ब्राह्राण हत्या के दोष से मुक्त होने का उपाय पूछते हैं। पुस्तक में उलिलखित श्रीराम व गुरू वशिष्ठजीके मध्य हुए साहितियक संवाद का सार यह है कि, गुरू वशिष्ठ श्रीराम को योगीगोरक्षनाथजी से योग की दीक्षा लेने का उपाय बताते हैं। गुरू वशिष्ठजी के बताये अनुसार सीता, राम, लक्ष्मण, हनुमान और राम-रावण युद्ध के सहभागी योगी गोरक्षनाथजी के पास जाते हैं जो उस समय पंचाल (वर्तमान पंजाब) के पशिचमोत्तर कोण में जेहलम नामक स्थान में जेहलम नदी के निकट सिथत पर्वत पर (वर्तमान में यह पाकिस्तान में जिलाझेलम में है) पर तपस्यारत्त थे।
श्रीराम द्वारा प्रार्थनाकिये जाने पर योगी गोरक्षनाथ द्वारा श्रीराम, लक्ष्मण तथा हनुमान काविधिवत कर्णच्छेद किया जाकर योगमार्ग में दीक्षित कियाजाता है। तीनों का पÍनाम (नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित होने वाले शिष्यों को गुरू द्वारा दियाजाने वालानाम) क्रमश: श्रीराम का अचलनाथ (रामनाथ), शेषनाग का अवतार होने के कारण श्रीलक्ष्मण का नागनाथ (लक्ष्मणनाथ)तथा श्रीहनुमान का बंकनाथनाम रखा गया। 
******श्रीअचलनाथ (श्रीराम) द्वारा पात पर भोजन करने और अंजुलि से पानी पीने के कारण पतंजलि नाम पडा और इनके नाम से पातंजल योग प्रसिद्ध हुआ। श्रीनागनाथ (श्रीलक्ष्मण) को टिल्ले की गदी पर आसीन किया। श्रीलक्ष्मण की दो शाखाएं चलीं। इनमें से टिल्ले पर रहने वाले नाटेश्वरी और अन्य स्थानों पर मठ स्थापित करने वाले दरियानाथी कहलाये। श्री बंकनाथ (श्रीहनुमान) द्वारा चलाया गया पंथ ध्वजनाथी कहलाया। सीता का कर्णच्छेद संस्कार नहीं किया गया, केवल आशीर्वाद और ध्यानयोग की दीक्षा दी गयी।*******


गर्ग संहितामें गर्ग ऋषि व भगवान श्रीकृष्ण के मध्य संवाद में श्रीकृष्ण द्वारा-गोरक्षनाथ: को देव: को मन्त्रस्तस्य पूजने। सेव्यते केन विधिना, तत्सर्वं ब्रूहि मे मुने।। पूछने पर गर्ग ऋषिद्वारा-श्रृणु कथा: सर्वा, गोरक्षस्य विधिक्रिया। गोरक्षं च âदि ध्यात्वा, योगीन्द्रोसेवितानर:।। विना गोरक्ष मन्त्रेण, योगसिद्धिर्न जायते। गोरक्षस्य प्रसादेन, सर्वसिद्धिर्नसंशय:।। कहकर श्रीकृष्ण कीजिज्ञासा कोशान्त किये जाने का वृत्तान्त है। इसीभांतिकल्पद्रुम तंत्र में भगवान श्रीकृष्ण व योगीगोरक्षनाथ के मध्य द्वारिका संवादषास्त्रार्थ पश्चात श्रीकृष्ण द्वारा रुकिमणी सहित योगेश्वर गोरक्षनाथकी वन्दना, श्रीकृष्ण और रुकिमणी के विवाह में पुरोहित का कार्य योगी गोरक्षनाथ द्वारा करवाया जाना तथा और युद्ध जीतने के पष्चात राजसूय यज्ञ में आमनित्रत करने के लियेे युधिषिठर द्वारा भीम कोयोगी गोरक्षनाथ के पास भेजना भी उस काल में उनकी उपसिथति को सिद्ध करता है। (उत्तर प्रदेष के गोरखपुर जिले में प्रसिद्ध गोरक्षनाथ मनिदर में एक भीमकाय पदचिंह के बारे में कहा जाता है कि, राजसूय यज्ञ में गोरक्षनाथ कोआमनित्रत करने के लिये जब भीम वहां पहुंचे तो गोरक्षनाथ समाधि में लीन थे। भीम द्वारा बहुत समय तकएक ही स्थानपर प्रतीक्षा करने के कारण पृथ्वी उस स्थान पर दब गयीजो चिरकाल से आज भी यथारूपहै।)"


नोट÷यह लेख बुक ,नाथ सम्प्रदाय इतिहास एवं दर्शन का है इस बुक को आप अवश्य ही पढे बहुत अद्भुत जानकारी दी गई है नाथ सम्प्रदाय के विषय में इस बुक के लेखक श्री हुक्म सिंह जी है।।

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